कानपुर का खेरेश्वर मंदिर महाभारत कालीन मंदिर है । यह 5000 साल पुराना प्राचीन मंदिर है । यहां पर गुरु द्रोणाचार्य ने 5 पांडव तथा 100 कौरवों को शिक्षा दी थी । जिसमें “द्रोणाचार्य” के पुत्र “अश्वत्थामा” भी सम्मिलित थे । यह वर्तमान में कई विस्मयकारी घटनाओं के लिए अक्सर चर्चा में बना रहता है । वहां के स्थानीय लोग तथा पुजारियों का कहना है कि वह हर रोज नई विस्मयकारी घटना देखने को मिलती है ।
बात करें, जियोग्राफी की तो वर्तमान में मंदिर पूरी तरीके से बदल चुका है । इसे आधुनिक टेक्नोलॉजी और ईद पत्थरों के जरिए एक मंदिर का आकार दिया जा चुका है । लेकिन आज से लगभग 5000 ईसा पूर्व इस मंदिर की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार नहीं थी । इस मंदिर के बगल से गंगा नदी बहा करती थी । जहां पर गुरु द्रोणाचार्य ने कुटिया में सभी पांडवों और कौरवों को शिक्षा और दीक्षा देने का कार्य किया थे ।
वर्तमान में इस मंदिर की भौगोलिक स्थिति कुछ इस प्रकार है कि इस मंदिर के सामने एक बड़ा तालाब और पीछे काफी खाली पड़ी एरिया है । और मंदिर से लगभग एक से 2 से 3 किलोमीटर की दूरी पर खेरेश्वर घाट है । जहां से गंगा नदी बहती हैं ।
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विस्मयकारी घटना के विषय में बात करें तो, मंदिर के पुजारी तथा वहां पर उपस्थित स्थानीय लोग अक्सर यहां पर “गुरु द्रोणाचार्य” के पुत्र अश्वत्थामा के देखे जाने के बात कहते हैं । कई स्थानीय लोग तथा मंदिर के पुजारी यह दावा करते हैं । कि उन्होंने अपनी आंखों से द्रोणाचार्य पुत्र ‘अश्वत्थामा’ को देखा है ।
पुराणों की माने तो अश्वत्थामा कभी ना मरने वाले यानी अमर थे । उन्हें भगवान श्री कृष्ण द्वारा श्राप दिया गया था । जिस कारण वह अमर हो गए थे ।और अक्सर मंदिर के बाहर कई विस्मयकारी घटना देखे जाने के बात लोगों द्वारा सुनी जाती है । जिस कारण खेरेश्वर मंदिर अक्सर चर्चा का विषय बना रहता है ।
बता दे, सावन के महीने में खेरेश्वर मंदिर के पास एक भव्य समारोह का आयोजन होता है । जिसे दूर दूर से देखने सैलानी आते हैं । आज भी यह विस्मयकारी घटनाएं पूरे कानपुर में प्रसिद्ध है । जिस कारण श्रद्धालुओं की अक्सर भीड़ आप इस मंदिर में देख सकते हैं ।
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